चिरांद गाथा

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चिरांद

श्वेतांक राय पप्पू

आकर्षित कर रहा यह पुण्य क्षेत्र!


सारण प्रवास के क्रम में मुझे चिरांद के बारे में जानकारी मिली। तीन नदियों के संगम पर स्थित उस तीर्थ स्थल को देखने व उसके तटों पर निवास करने वाले संत महापुरूषों से जुड़े स्थानों को नमन करने की प्रबल इच्छा जागृत हुयी। जहां तक मुझे स्मरण है दिसंबर 2008 में मैं पहली बार चिरांद गया था। मेरे पास बैठे एक सज्जन ने कहा कि इस स्थान पर गोस्वामी तुलसी दास भी कभी पधारे थे। भगवान श्रीराम व लक्ष्मण जी के पुरूषार्थ का वर्णन करते हुए उन्होंने यहां की भौगोलिक व प्राकृतिक दृष्यों का जो रेखा चित्र अपने अमर सत ग्रंथ रामचरित मानस के बाल कांड में खिंचा है, वह काव्य जगत का धरोहर है। गोस्वामी जी ने राम चरित मानस के बाल कांड में लिखा है- देव भगति सुर सरित ही जाई, मिली सुकीरति सरजू सुहाई। सानुज राम समर जसु पावन, मिलेउ महानदु सोन सुहावन। जुग बीच भगति देव धुनिधारा ......। मानस की इन पंक्तियों को सुनने के बाद मैं तत्काल उस स्थान के लिए चल पड़ा। मन में कई प्रकार के विचार उठ रहे थे। जिस स्थान का वर्णन लोकनायक तुलसी दास ने इस रूप में किया है वह स्थान निष्चित रूप से अद्भुत होगा। कुछ मित्रों के साथ मैं चिरांद स्थित गंगा तट पर पहुंच गया। मैं जहां खड़ा था उससे पष्चिम में थोड़ी दूरी पर गंगा व सरयू की धाराएं मिल रही थी। वहीं थोड़ा और आगे पूरब दिषा में दक्षिण से आ रहे सोननद की धारा गंगा-सरयू से मिल रही थी। दिन के उजाले में इन धाराओं को मिलते देख अद्भुत आनंद की अनुभूति हुई। यह स्थान सहज ही आकर्षित कर रहा था। लेकिन चिरांद के गंगा तट पर चलते हुए जो दिखा उससे मेरा मन व्यथित हो उठा। अंतरमन कह रहा था कि इस तीर्थ की ऐसी दुर्दषा क्यों? गंगा के पवित्र तट पर इतनी गंदगी क्यों? कैसे सुधरेगी इस तीर्थ की दषा? पुरातात्विक स्थल की भी दषा अत्यंत दयनीय थी। स्मरण है, उस दिन हम लोगों ने तय किया था कि इस तीर्थ स्थल के संरक्षण व विकास का प्रयास षुरू किया जाए। इस दिषा में स्थानीय लोगों के सहयोग से काम भी षुुरू हुआ। जिसके परिणामस्वरूप चिरांद विकास परिषद् की स्थापना हुयी। काम अभी षुरू हुआ है। इसे बहुत आगे बढ़ाना होगा। तभी इस तीर्थ की प्रतिष्ठा पुनस्र्थापित होगी, इसका पुरूषार्थ जागृत होगा। यहां आकर लोग षांति व आनंद का अनुभव करेंगे। यह स्थान हमारे पूर्वजों की कीर्ति व पुरूषार्थ की धरोहर है। इसे बचाने व सजाने के लिए हमें ही आगे बढ़ना होगा। एक सांस्कृतिक व धार्मिक केन्द्र के रूप में इसकी प्रतिष्ठा थी लेकिन कालक्रम में यह केन्द्र हमारी आॅंखों से ओझल हो गया। अब हम ऐसा नहीं होने देंगे। इस तीर्थ को जागृत कर इस लायक बनाएंगे कि यहां आकर लोग षांति व आनंद का अनुभव करें। इसके साथ ही यह स्थान सामाजिक-सांस्कृतिक केन्द्र के रूप में भी विकसित हो सकता है जहां से समाज के निचले पायदान पर खड़े बंधुओं को आगे बढ़ाने का कार्य चले। चिरांद विकास परिषद् सामाजिक समरसता के लिए भी कार्य कर रही है। इस क्षेत्र के धार्मिक केन्द्रों व संत-महात्माओं के सहयोग से सेवा कार्य भी चलाये जा रहे हैं ताकि भारत की सनातन परंपरा एक बार फिर इस संगम पर साकार हो उठे। अपने देष में नदियों के तटों पर ही अधिकांष तीर्थ स्थल है। भारत का सांस्कृतिक व धार्मिक जीवन प्रवाह नदियों के साथ चलता रहा है। हमारी नदियां आज संकट में है। माता गंगा आज संकट में है। मां गंगा के तट पर ही इस चिरांद का उद्भव व विकास हुआ है। चिरांद विकास परिषद् इसके महत्व को समझता है। इसलिए चिरांद का मुख्य महोत्सव गंगा महाआरती व गंगा बचाओ संकल्प समारोह के रूप में होता है। यह आयोजन पिछले चार वर्षों से निर्बाध रूप से जारी है। इस आयोजन के बहाने सारण के साथ ही भारत के अन्य स्थानों से संत-महात्मा व गृहस्थ इस संगम स्थल पर एकत्र होते हैं। गंगा महाआरती के बहाने यहां संगतिकरण व विचार प्रबोधन के अद्भुत समन्वय से जो वातावरण यहांॅ बना है उससे इस तीर्थ स्थल के विकास के लिए चल रहे प्रयास को षक्ति मिली है। अब वह दिन दूर नहीं जब चिरांद पर हम गर्व महसूस करेंगे। इस तीर्थ स्थल पर ग्रामीण विकास, सेवा, सामाजिक समरसता के साथ ही सांस्कृतिक चेतना की भी धारा प्रवाहित होगी। (लेखक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के उत्तर बिहार के क्षेत्र प्रचारक के दायित्व में हैं व चिरांद विकास परिशद् के सम्मानित सदस्य हैं।)