चिरांद गाथा

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चिरांद

श्रीराम तिवारी

अकेला ही चला था मंजिल-ए-जानिब.... कारवां बनता गया!


समझ में नहीं आता कहां से शुरू करूॅं। लम्बा संघर्ष है, प्रयास है और अपेक्षाकृत सफलताएॅं बहुत थोड़ी हैं। परंतु, यही थोड़ी सफलताएॅं, मुझे लम्बे संघर्ष और विरोधों को झेलने की षक्ति प्रदान करती रही हैं। मानव सभ्यता की उन्नति और अवनति के साक्षी रहे चिरांद की उन्नति मुझसे कहां सभव थी? हाॅं, मैंने चिरांद की उन्नति की राह में पड़े रोड़ों को दूर फेंकने का प्रयास अवष्य किया है और इन अवरोधों-रोड़ों को फेंकने में कुछ ट्रेलर का काम किया है चिरांद विकास परिषद् ने। मैं उन लोगों का दिल से आभारी हूॅं जिनके सहयोग से चिरांद के विकास के लिए लम्बा संघर्ष बोझिल नहीं लगता और यह संघर्ष किए ही जा रहा हॅूं, चिरांद को उसका हक दिलाने के लिए लड़े ही जा रहा हूॅं। इसलिए भी संतोष है कि इस लड़ाई में अब मैं अकेला नहीं रहा। हां, जब चिरांद की पहचान स्थापित कराने, इसका विकास कराने के लिए पहला डेग डाला था, तब अकेला ही चला था। परंतु कुछ ही दिनों में....... अकेला ही चला था मंजिल-ए-जानिब, लोग मिलते गए, कारवां बनता गया! वैसे भी, सनातन धर्म के लिए पूजनीय ग्रंथ श्रीमद्भागवत गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है- यतो धर्मः ततो जय, अर्थात जहां धर्म है, वहां जीत अवष्य होती है। और, चिरांद तो धर्म नगरी रही ही है, स्वयं भगवान श्रीकृष्ण की लीला भूमि! फिर, इस धर्मनगरी के उत्थान के लिए किया गया प्रयास भला निरर्थक कैसे चला जाता? सुपरिणाम सामने आ रहे हैं, हां मुझसे परिणाम की चिंता जाती रही है और प्रयास स्वभाव में समाहित हो चला है। भगवान श्रीकृष्ण गीता में ही कहते हैं- कर्मण्ये वाधिकारस्ते मां फलेषु कदाचन! सच भी है, धर्म के लिए किए गए प्रयासों के फल की चिंता भला मैं क्यों करूॅं? वह तो ईष्वर देंगे ही। जब पीछे मुड़कर देखता हूॅं तो लगता है कि वाकई ईष्वर ने कितना कुछ दिया है। तब की इस मरूभूमि पर जिसे लोग सिर्फ बालू के लिए जानते थे, आज मां गंगे की महाआरती में लाखों की संख्या में लोग एकत्र होते हैं। श्रद्धा से षीष नवाते हैं और परम पुण्य के भागी बनते हैं। मैं यह भी नहीं कहता कि यह मेरे ही प्रयासों का फल है, लेकिन यह अवष्य कहूॅंगा कि यह मेरा सपना था और इसके लिए मैं लगातार प्रयास करता रहा हूॅं, कर रहा हॅंू। सन् 2006 में पटना विष्वविद्यालय के इतिहास विभाग के रीडर बी.एस. वर्मा इंग्लैंड-यात्रा से लौटने के उपरांत अपने पुत्र के साथ चिरांद आए थे। बी.एस. वर्मा वही व्यक्ति हैं, जिन्होंने पुरातात्विक स्थल चिरांद की खुदाई कराई थी जिसमें विभिन्न सभ्यताओं के अस्तित्व के रूप में अवषेषों की प्राप्ति हुई थीं। जब खुदाई हो रही थी, तब भी मेरी अवस्था बहुत छोटी नहीं थी, दिमाग ने पुरातत्व की बातें समझना नहीं चाहा था। लेकिन, खुदाई को अब वर्षों बीत गए थे और बातें कुछ-कुछ समझ में आने लगी थीं। गांव के लोगों से पता चला कि जिस व्यक्ति ने चिरांद की खुदाई कराई थी वे पुनः यहां की स्थिति देखने आए हैं। पुरातात्विक स्थल, जहाॅं बी.एस. वर्मा के आने की बात पता चली, वह मेरे घर से थोड़ी ही दूर पर हैै। मैं अनायास ही वहाॅं पहुॅंच गया। श्री वर्मा खुदाई स्थल को देख रहे थे और स्थानीय लोगों की भीड़ उन्हें घेरे खड़ी थी। मैंने भी उन्हें सुना, वे द्रवित थे और कह रहे थे- देष के बाहर के लोग जिस स्थल के बारे में जानना चाहते हैं, वहाॅं के लोगों में कोई जिज्ञासा ही नहीं? उन्होंने लोगों को बताया कि जब वे इंग्लैंड में थे तो कैसे लोगों ने उनसे चिरांद के विषय में पूछा था। कितनी बड़ी बात हो गई थी कि जिस स्थान के बारे में सुदूर परदेस में बैठा कोई व्यक्ति जानकारी चाह रहा है, उसी स्थान पर, उस स्थान के प्रति लोगों में कोई भाव नहीं है। वे इस स्थिति से बेहद दुःखी थे और उन्होंने कुछ लोगों को आगे आकर चिरांद के लिए कुछ करने का सुझाव दिया। मैंने पहली बार उनकी बातों में, उनकी भावनाओं में और उनकी आंखों में चिरांद का दर्षन इतनी प्रतिष्ठा के साथ किया था। तब मुझे लगा कि चिरांद के लिए सचमुच कुछ किया जाना चाहिए। अलग बात है कि जब करने चला, तो वह कुछ, बहुत कुछ बन गया। मेरे दिलोदिमाग में चिरांद के उत्थान, उसे वैष्विक स्तर पर पहचान दिलाने और उसे पर्यटन क्षेत्र के रूप में विकसित करने के लिए योजनाएॅं उमड़ने-घुमड़ने लगी थीं। लेकिन, यह एक अकेले की बात नहीं थी, और इस कार्य के लिए कोई साथी दूर-दूर तक नजर नहीं आ रहा था। फिर भी मैंने प्रयास आरंभ किया। मैंने कुछ ही दिनों पूर्व दैनिक जागरण के स्थानीय संवाददाता के रूप में कार्यारंभ किया था। मुझे यह बात खटकी कि स्थानीय अखबारों में भी चिरांद के बारे में खबरें प्रकाषित नहीं हो रही थीं। अनजान लोग अनजान ही थे और जानने वाले अपनी स्मृति खो रहे थे। मैंने चिरांद के बारे में खबर लेखन आरंभ किया, तब इतनी बड़ी खबर को सामने लाने के लिए दैनिक जागरण के तत्कालीन ब्यूरो चीफ श्री षैलेन्द्र षर्मा ने मुझे सराहा और इसके बारे में सिलसिलेवार ढंग से खबरें प्रकाषित करने के लिए प्रेरित किया। कुछ ही दिनों में सिर्फ दैनिक जागरण में प्रकाषित होने वाली खबर, पटना से प्रकाषित होने वाले सभी अखबारों में नजर आने लगी थी। मेरे प्रयास का पहला चरण पूरा हो चुका था और इसने रंग भी लाया। रंग इतना चटक था कि अब चिरांद के बारे में हर सप्ताह यहाॅं के अखबारों में खबरें प्रकाषित होती रहती हैं और सारण के प्रायः हर व्यक्ति का चिरांद नाम से साक्षात्कार हो चुका है। चिरांद के बारे में मीडिया तो सजग हो चुकी थी लेकिन आगे के प्रयास अब भी सामथ्र्य व सहयोगी के अभाव में रूके थे। इसी बीच, वर्ष 2008 में दैनिक जागरण के छपरा ब्यूरोचीफ के रूप में श्री कृष्णकांत ओझा जी आए। उनके सामने से भी चिरांद की खबरें गुजरीं। जब गुजरीं तो वे चैंक गए। इतना बड़ा स्थल और इतना चर्चाहीन? वे चकित थे कि वे स्वयं भी बिहार में होते हुए इस स्थल से पूरी तरह परिचित नहीं थे। उन्होंने जब इस स्थल के विकास के लिए मुझे प्रेरित किया तो मेरी सोच वाले प्रयास, मूर्त रूप में सामने आने लगे। यह चर्चा चली कि जब तक सांगठनिक प्रयास नहीं होगा, चिरांद को उसका हक दिलाने में परेषानी होगी। तब चिरांद के पुनरोत्थान के लिए श्री कृष्णकांत ओझा जी व चिरांद ग्रामवासियों के सहयोग से चिरांद विकास परिषद् का अस्तित्व सामने आया। स्वयं कृष्णकांत जी इसके अध्यक्ष बने, मैं सचिव। परिषद् के मूर्त रूप लेने के बाद तो जैसे मेरे प्रयासों को पर ही लग गए। कुछ सामथ्र्य भी विकसित हुआ और कुछ साथी भी मिल गए। परिषद् से जुड़े साथियों व चिरांद का हित चाहने वाले प्रबुद्धजनों के सहयोग से चिरांद में धार्मिक आयोजन कराने की योजना बनी, ताकि इस स्थल का महत्व सामने लाया जा सके। योजना के अनुसार, वर्ष 2009 में 2 जून को गंगा, सरयू व सोन के संगम पर स्थित चिरांद में गंगा महाआरती का आयोजन किया गया। चिरांद के बंगाली बाबा घाट पर पहली बार हुए इस आयोजन का उद्घाटन बिहार राज्य के तत्कालीन लोक स्वास्थ्य एवं अभियंत्रण मंत्री श्री अष्विनी चैबे ने किया और करीब 30 हजार की भीड़ एकत्र हुई। इस मौके पर परिषद् के माध्यम से पहली बार लोगों ने गंगा को प्रदूषण मुक्त किए जाने की बात सोची-समझीं और फिर इसके लिए संकल्प भी लिया। परिषद् के आग्रह पर काषी से आए आचार्य श्री राजेष कौषिक ने पहली बार यहाॅं विधि-विधानपूर्वक गंगा महाआरती करायी, जो अब हर वर्ष यहाॅं आते हैं। परिषद् के प्रयास से हुए आयोजन में पधारे मंत्री श्री चैबे ने चिरांद में मुक्ति धाम योजना, जलापूर्ति योजना के साथ ही अन्य विकासात्मक कार्यों की घोषणा की और तब पहली बार चिरांद के लोगों को भी लगा कि चिरांद विकास परिषद्, अपने नाम के अनुरूप चिरांद का विकास करने वाली संस्था है। वरना, इसके पहले इस संस्था के बारे में भी लोगों के मन में तमाम तरह के भ्रम बने हुए थे, जिसका निराकरण एक ही आयोजन ने कर दिया। चिरांद के विकास को ही जन्मी परिषद् ने अपनी आॅंखें सदैव खुली रखी हैं। इन्हीं सजग और खुली आॅंखों ने जब यह देखा कि पुरातात्विक स्थल चिरांद के संरक्षित क्षेत्र में अवैध रूप से भवन का निर्माण हो रहा है तो इस बात की जानकारी विभागीय पदाधिकारियों को दी गयी। बाद में पता चला कि वह विभाग के द्वारा ही निर्मित हो रहा था, तब लोग इस विभागीय लापरवाही पर विस्मय में पड़ गए थे। मीडिया ने भी इस मुद्दे पर परिषद् का साथ दिया और विधानसभा की प्रत्यायुक्त समिति के अध्यक्ष व तरैया के राजद विधायक रामदास राय ने स्थल निरीक्षण किया। उन्होंने जाॅंच की अनुषंसा की और तत्काल ही भवन तोड़ने का निर्देष हो गया। तब, वर्तमान श्रम एवं संसाधन मंत्री जनार्दन सिंह सिग्रीवाल कला संस्कृति एवं युवा विभाग मंत्री थे। सन् 2010 की फरवरी माह में सूबे के मुख्यमंत्री नीतीष कुमार प्रवास यात्रा के क्रम में सारण के एकमा आए। तब, उनका कार्यक्रम चिरांद आने का नहीं था। परिषद् के प्रयास व न्यौता पर वे कुछ समय निकालकर चिरांद आए। जब आए तो सूबे के इस मालिक की भी आॅंखें चिरांद को तकते हुए कुछ देर के लिए ठहर-सी गयीं। मौके से ही उन्होंने जल संसाधन विभाग के अधिकारियों से बात की और तत्काल कटाव निरोधी कार्य का निर्देष दिया। दरअसल, तीन नदियों के तट पर अवस्थित चिरांद में हर वर्ष कटाव होता रहता है और यह तब भी जारी था जब मुख्यमंत्री का आगमन यहाॅं हुआ था। संवेदनषील मुख्यमंत्री ने इस स्थिति की गंभीरता को समझा और तत्काल निरोधात्मक कार्रवाई का आदेष दिया ताकि कटाव से पुरातात्विक स्थल चिरांद को क्षति न पहुॅंचे। इस मौके पर उन्होंने चिरांद विकास परिषद् द्वारा लगायी गयी चित्र-प्रदर्षनी का भी अवलोकन किया और चिरांद के विकास के लिए अन्य योजनाएॅं व कार्य का भी आष्वासन चिरांदवासियों को दिया। कुछ ही दिनों बाद, मुख्यमंत्री के निर्देष के आलोक में सूबे की कला संस्कृति मंत्री सुखदा पांडेय यहां आयीं। उनके साथ विभागीय सचिव के.पी. रामय्या भी थे। 25 सदस्यीय टीम ने चिरांद का निरीक्षण किया और रिपोर्ट के साथ राजधानी लौट गयी। निराष करने वाली बात है कि इस संबंध में आगे की कार्रवाई अधूरी ही है। यह तो हुई चिरांद के लिए सरकार व विभाग द्वारा किए गए प्रयास की कहानी, जो परिषद् के प्रयास से ही बनी। लेकिन, परिषद् ने चिरांद के विकास का जिम्मा सिर्फ सरकार व विभाग पर नहीं छोड़ा, वह अनवरत इसके लिए संघर्षरत है। चिरांद के उत्थान के लिए किया जा सकने वाला हर प्रयास परिषद् कर रही है। परिषद की वेबसाइट श्ूूूण्बीपतंदकअचण्बवउश् पर चिरांद के बारे में विस्तृत जानकारी संग्रहित की गयी है, ताकि सुदूर बैठे लोगों को भी चिरांद के बारे में सूचनाएं निरंतर मिल सके। इसके साथ ही, चिरांद से संबंधित एक पुस्तक के प्रकाषन की भी योजना परिषद् की है, ताकि चिरांद से संबंधित वृहद जानकारी लोगों को मुहैया हो। चिरांद की गाथा हर एक की जुबां पर हो, इसी के प्रयास की एक कड़ी प्रकाषित यह लघु पुस्तिका है, जिसमें विभिन्न प्रबुद्ध व्यक्तियों के समृद्ध आलेख छपे हैं। जैसे चिरांद विकास परिषद् के प्रयासों की षुरूआत के बारे में बताने के लिए षब्द नहीं मिल रहे थे, अंत भी करना मुष्किल प्रतीत हो रहा है। वैसे, अंत में बस इतना ही कहना चाहता हूॅं कि चिरांद विकास परिषद् के प्रयासों का कोई अंत नहीं है, तब तक जब तक कि पुनः चिरांद की पहचान कायम न हो जाए, यह वैष्विक स्तर पर स्थापित न हो जाए, पाठ्यपुस्तकों में इसे स्थान न मिल जाए, और जब तक कि इसे पर्यटनस्थल न घोषित कर दिया जाए! (लेखक चिरांद विकास परिषद् के सचिव हैं।)